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हम विश्वगुरु हैं, थे और रहेंगे

“आदि गुरुवे नमः। जुगादि गुरुवे नमः। श्री सद्गुरुवे नमः।” जो आदि गुरु ने कहा था वही दूसरे ने कहा, वहीं तीसरे ने कहा, वही चौथे ने कहा। “इदं परंपरा प्राप्त” यह हमने परंपरा से पाया है, हमारी कल्पना नहीं है। हम कोई स्वयंभू गुरु नहीं है। “हमारा जन्म हमारे गुरु ने दिया है।” जैसे तुम स्वयं नहीं पैदा हुए, तुम्हारा पैदा करने वाला तुम्हारा बाप है और तुम्हारा बाप भी स्वयं पैदा नहीं हुआ, तुम्हारा बाप अपने आप हुआ था क्या? तुम्हारे बाप का बाप भी पैदा हुआ, बाप के बाप के बाप का बाप भी पैदा हुआ। ठीक है? “बिना पैदा हुआ बाप कौन है? केवल “स्वयंभू” जो स्वयं था! वही सब का पिता है” इसलिए उसको हम “परमपिता” कहने लगे। क्यों? जब से वेजिटेबल घी के नाम बिकने लगा तब उसे शुद्ध घी कहने लगे। शुद्ध घी नाम पहले था क्या? अच्छा  सौ दो सौ साल  पहले  शुद्ध घी होगा क्या ? शुध्द घी तो था पर शुद्ध घी नाम नही था, घी था सिर्फ।  तो शुद्ध नाम कब पड़ा? जब से फर्जी घी बन गया। तो जब से फर्जी बाप बन गए तब उसे परमपिता कहना पड़ा कि लोग कंफ्यूज ना हो जाए। जैसे सभी जननी बन बैठी तब उसे जगज्जननी कहा गया। ठीक है? तो सच्चाई यही है। तो अब हमें क्या करना है? हमे दो ही चीजें जाननी है- एक तो हम “सत्” है और दूसरा जानना है “सर्वत्र”, दो चीजें समझ लो। लोग माने ना माने, चाहे हिंदू को सांप्रदायिक कहे चाहे दकियानूसी कहे, चाहे कट्टर कहे और जो भी आरोप लगा सकते हैं, लगाएं “पर सच है कि यदि सत्य को ठीक ठीक समझा है तो भारत ने समझा है! ठीक ठीक समझाया है तो हमारे वेदों ने समझाया है और भारत के गुरुओं ने समझाया है!”  इसलिए किसी देश का धन, सोना अच्छा होगा, किसी देश की राजनीति होगी, किसी देश में धन बहुत होगा। “हमारे देश में गुरु है ! हम गुरुओं के धनी हैं!” (अंग्रेज ) राजनीति में कितने खिलाड़ी रहे जब विश्व मे शासन किया है! विश्व गुलाम रहा है, विश्व! शायद आप भी नही समझते ,भारत जिनका गुलाम था अमेरिका भी उनका गुलाम था, रूस भी उन्हीका गुलाम था। विश्व को गुलाम बना के रखा है अंग्रेजो ने, इतने दिमागदार थे राजनीति में! आज भी अभी उन्हीं की भाषा चलती है। कही चले जाओ, हिंदी के बिना काम चल जाएगा। साउथ में भी जाओ, हिंदी नही चल रही इसी देश में। और देश में तो छोड़ो। आज भी अभी हम गुलाम है उनकी भाषा के। पर फिर एक ये कह दूँ…. राजनीति में उनके हम गुलाम हो गए। (काफी वर्षों तक वे) रहे, मुश्किल से अभी वो गए पर अभी उनकी गुलामी नही गई, उनकी मानसिकता नही गई। “पर उपनिषद् विद्या के लिए आज भी वे भारत ही आते है।” रूस के आते हैं , अमेरिका के आते हैं, और भी कई देश के आते है। “तो  गुरु खोजना हो तो भारत में !” जैसे सेव कश्मीर के, कही के कुछ, कही के कुछ। जैसे हमारे जन्मभूमि के पास अमौली की हवन सामग्री फेमस थी, लेकिन कही के लोटे प्रसिद्ध है, कही के ताले प्रसिद्ध है। ठीक है? ऐसे ही कही का कुछ, कही का कुछ विश्व मे प्रसिद्ध है। पर “अध्यात्म जो है वो भारत का था, भारत में आज है, और भारत में ही रहेगा। इसलिए विश्वगुरु हम थे, विश्वगुरु हम आज है, और विश्व गुरु हम रहेंगे।”

ॐ शांति: शांति: शांति:

पूर्ण चेतना का चमत्कार


पशुओं की अपेक्षा मानव में चेतना अधिक आई। इस प्रकार मानव की अपेक्षा महामानव में पूर्ण चेतना आ सकती है। कॉन्शसनेस से सुपरकॉन्शसनेस में हम ज्यादा चेतन और पूर्ण चेतन हो सकते हैं। हम अंदर इतने अधिक चेतन हो जाएं की जड़ता जीरो हो जाए। अभी पेड़ों में, दीवालों में जड़ता तो पूर्ण है; लेकिन, चेतना जीरो पावर जैसी है। आप मान लीजिए कि दीवारों, पत्थरों और पेड़ों में 90% जड़ता है और 10% ही चेतना है। पशुओं में आप मान सकते हैं कि 50% जड़ता और 50% चेतना है। इसी प्रकार मानव में 75 % चेतना और 25% जड़ता है। इसीलिए वह कुछ सोचता और विचारता है। लेकिन, मैं यह कहता हूं कि हममें 99 % चेतना होनी चाहिए और केवल 1% जड़ता रह जानी चाहिए।
हमारा शरीर भी चेतना में रूपांतरित हो जाए; हमारा मन भी चेतना में रूपांतरित हो जाए और हमको ऐसा लगने लग जाए, जैसे हम चेतना के पुन्ज हैं। जैसे लोहे को अग्नि में डाल दें, तो अग्नि का पुंज हो जाता है। इसी प्रकार हमारा मन, हमारी वृतियां, हमारी प्रकृति इतनी जागरूक होती चली जाए कि हम देखें कि केवल “मैं” हूं। जब आप सुषुप्त होते हैं, तो सुषुप्ति में आप की जड़ता आत्मा में पहुंच जाती है और चेतना इतनी न्यून हो जाती है, जैसे जीरो पावर के ब्लब में प्रकाश न्यून हो जाता है। इस प्रकार नाममात्र चेतना, बाकी सब जड़ता रहती है।
स्वप्न में जड़ता भी होती है और चेतना भी होती है। शरीर का अज्ञान होता है और स्वप्न का ज्ञान होता है। इसका मतलब यह है कि आप अंदर- अंदर जगे भी हैं और बाहर – बाहर सोए भी हैं। जब आप जागृत अवस्था में आते हैं, तो आप 75 % चेतन हो जाते हैं। अब आपको शरीर का भी अनुभव होता है, भूतपूर्व कल्पनाओं तथा अवस्थाओं का भी अनुभव कर लेते हैं। लेकिन, यदि आप 75 % से ज्यादा जगना शुरू कर दें, तो जितनी- जितनी आपके अंदर दृष्टाभाव में जागृति आना शुरू होगी, उतना- उतना ही आपको लगेगा जैसे शरीर भी सुन्य हो गया, शरीर बिल्कुल शिथिल हो गया। शरीर पूर्ण चेतना में परिणत हो गया और “मैं” केवल चेतना का स्वरूप रह गया। “मैं” चैतन्य रह गया, “मैं” दृष्टा रह गया। इसको हम समाधि कहते हैं, जहां जड़ता जीरों में पहुंच जाती है।