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अयमात्मा ब्रह्म (महावाक्य)

यदि तुम जागे रहो तो स्वप्न तुम पर हावी नहीं हो सकता। स्वप्न तब आएगा जब तुम इस देह को भूलकर तुम खुद स्वप्न बन जाओ। साँप तुम्हें तभी डसेगा जब तुम देह हो, चाहे जाग्रत के देह हो, चाहे स्वप्न के देह हो। यदि तुम देह नहीं हो और साँप डस भी जाए तो किसे डसेगा? क्या तुम्हें डसेगा? भौतिकवादी कहेगा कि साँप है और डस गया । अरे, जिसमें चेतना ही न हो और साँप डस गया तो किसे डस गया? जिस मकान में कोई रहता ही नहीं है, यदि वो टूट भी जाए तो कौन सा फर्क पड़ने वाला है? अर्थात् चेतना जब भौतिक देह में होगी तो भौतिक जगत है, स्वप्न में है तो स्वप्न जगत है और यदि आत्म देह में है तो ब्रह्म है। इसलिए जब तुम आत्मा में होगे, तब तुम्हें परमात्मा मिलेगा। जब तक तुम आत्मा नहीं हो, तुम्हें परमात्मा नहीं मिलेगा। क्योंकि परमात्मा का अंश- व्यष्टि और समष्टि दोनों ही हैं। व्यष्टि जगत समष्टि जगत, व्यष्टि स्वप्न समष्टि स्वप्न, व्यष्टि आत्मा समष्टि आत्मा, परमात्मा हो तो ब्रह्म मिल गया। अयमात्मा ब्रह्म। और भी बताऊँ- तुम जीव होगे तो ईश्वर मिलेगा? नहीं मन और तन होगे तो संसार ही मिलेगा।