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गुरु की बुद्धि

यह शरीर रथ है, इन्द्रियां घोड़े हैं, मन लगाम है, बुद्धि सारथी है, आत्मा रथी है। चाहे कितना अच्छा रथी हो, यदि सारथी चाहे तो रोड में उतर जाये, गड्ढे में डाल दे। यह बुद्धि तुम्हें मार भी सकती है, गिरा भी सकती है, और बचा भी सकती है और यही बुद्धि तुम्हें लक्ष्य तक पहुंचा सकती है।

यह आत्मा – परमात्मा सारी बातें बुद्धि के हाथ में है। यह बुद्धि ही तो आदमी बना दे या ब्रह्म बना दे। ‘देहोअहम् से शिवोहम्’ बना दे।

“मैं ब्रह्म हूँ” ;यह बुद्धि बनी रहे। जैसे आदमी होना एक समझ से स्वीकारा। मैं पैदा हुआ, बूढ़ा हो जाऊंगा, आदमी के धर्म आपको समझ आ गये। यदि ब्रह्म का समझ आ जाये कि मैं ब्रह्म हूँ तो आप नहीं मरोगे।


परन्तु देहाध्यास जन्म से है और ब्रह्माभ्यास बिना गुरु के नहीं हो सकता। इसके लिए गुरु से “मैं ब्रह्म हूँ” यह समझ आ जाय फिर बार – बार ब्रह्माभ्यास हो सकता है। एक बार यह जानना जरुरी है तभी ध्यान और इसका अभ्यास बढ़ेगा।


मैं होश में हूँ तो दुख – चिंता, मान – अपमान या संसारी विषय आ रहे हैं परन्तु पूर्ण होश होने से ये पता चलते हुए भी विचलित नहीं कर सकते।


गुरु के कृपा द्वारा बुद्धि जाग्रत हो। मैं अपने आप में पूर्ण शुद्ध हूँ। यह सही – सही समझ आ जाये। यही “ज्ञान समाधि” है।


मैं ब्रह्म हूँ, मैं ब्रह्म हूँ ‘शब्द दोहराओगे’ मैं ब्रह्म हूँ ‘का मतलब सर्वत्र मैं हूं, सब में’ मैं ‘हूँ। यह गुरु द्वारा दी हुई बुद्धि के द्वारा ही जाना जा सकता है।

नक़ाब

तुम ख़राब कर लेना अपने कपड़ों को

तुम दाग लगा लेना उनमें घुलने को

पर दिल ख़राब नहीं करना

बिना जाने, बिना समझे

तुम हिसाब नहीं करना

गाँठ पड़ जाएगी, बल आ जाएँगे इस रस्सी में

गले से भर के मुझे जज़्बातों से

तुम सवालात नहीं करना

आखों में देख लेना

सको तो पढ़ लेना

दया की भीख ना देना

नक़ाब कर लेना -२ …