सब समस्याओं का समाधान परम का स्मरण है। और उसका स्मरण ही तुम्हें परमात्मा बना देता है।
जानत तुम्हहि, तुम्हइ होई जाई।
“ब्रह्मविद् ब्रह्मैव भवति।”

जो उसको जनता है, ठीक-ठीक जो जनता है, ठीक जानने वाले ने उसको नहीं जाना, ठीक-ठीक जानने वाला अपने को ही जानता है। वही हम परम को जानने को निकले और जानते-जानते हम ही परमात्मा निकले। घड़ा मिट्टी को जानने निकला, घड़ा मानकर निकला है, पर जब मिट्टी मिली तो खुद मिट्टी ही मिला है वह क्या? और मिट्टी के सिवा कोई मिला नहीं। द्वैत न रहे तो स्मरण की भी आवश्यकता नहीं है। यदि घड़े के उपाधि ही मिट जाये तो मिट्टी के स्मरण की जरूरत ही नहीं है। जरा ध्यान रखना यह बात गहरी है- घड़े की उपाधि फूट जाये तो मिट्टी के स्मरण की जरूरत नहीं है क्योकि न घड़ा दिखेगा, न घड़े की याद होगी। न मरना बुरा दिखेगा, न पड़ोसी बुरा दिखेगा क्योकि जिस उपाधि से दिखता था, वह उपाधि नहीं है। उपाधि के बिना द्वैत दिखेगा नहीं और अद्वैत से राग-द्वेष होगा नहीं। एक घड़ा जब धमकी दे कि मैं तुझे तोड़ दूँगा तो दूसरा डरेगा क्योंकि वह भी घड़ा है। तो जब तक उपाधि है तब तक द्वैत रहेगा, भय रहेंगा। 
तुम मिट्टी हो। तुम्हारी सोच एक घड़े की थी, अब तुम्हारी सोच मिट्टी की है। घड़े से पूछो कि वह तोड़ने की धमकी देता है, किसको? तुझे? तू तो मिट्टी है। जो घड़ा धमकी देता है, वहाँ तू है। जिसको धमकी देता है, यहाँ तू है। तू कौन है? तेरा अहम् एक तरफ रहता है। तेरी ‘ मैं’ इसमें है, उसमें नहीं। यदि तू ब्रह्म है तो तेरी ही “मैं’ सब में है। ब्रह्मज्ञानी बुद्धि को लीन नहीं करता, विचारता है कि यह क्या है? दिखता है तो क्या हुआ? यह सकोरा है, यह घड़ा है, दिख रहा है; दिखने दो। तू क्या है? बस तू विचार कर घड़ा है की सकोरा है कि मिट्टी है? यदि सच है तो तेरे आलावा क्या है? आँखे बन्द मत कर विचार कर।
नाम लेत भवसिंधु सुखायीं। करहु बिचारु सूजन मन माहीं।।
नाम लेते समझ आया। मिट्टी नाम लेकर देखो कि घड़ा क्या है? विचारो कि मिट्टी नाम किसका है? घड़ा नाम किसका है? क्या सकोरा घड़े से अलग है? क्या घड़ा मिट्टी से अलग है?
ब्रह्म माने क्या? जिससे कोई न अलग है, न हो सकता है और न होगा। ब्रह्म का नाम लेते ही यह बोध होना चाहिए। मिट्टी को जानते है हम, इसलिए नाम लेते ही घड़ा, सकोरा कल्पित हो जाते हैं। पर दिमागदार आदमी यदि सचमुच मुमुक्षु है, सचमुच दुःखो से छुटना चाहता है, तो बुद्धि का दुरपयोग नहीं करेंगा वह ब्रह्मज्ञान द्वारा अपने ही दोषों का क्षय करेंगा। ब्रह्मज्ञानी अपनों दोषों के क्षय के लिए ब्रह्मज्ञानी होता है। अपना बन्धन काटने के लिए, द्वैत काटने के लिए, अपना अहंकार मिटाने के लिए ब्रह्मज्ञान प्राप्त करता है।

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2,074 Comments

  1. KM August 10, 2020 at 12:43 pm

    Good One!

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  2. VCB August 11, 2020 at 6:26 am

    पढ़ा, आभास किया “एक जीवन दर्शन का” स्वयं को जानने का सत्य और मिथ्य दोनों के वजूद में मिथ्या रूपी गांठ खोल सत्य रूपी कपड़े का आलिंगन कर संसार रूपी नाव से मोक्ष रूपी किनारे पर उतर मुक्त हो ब्रम्ह होना ..ॐ तत्सवमसि

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  3. Anirudh August 15, 2020 at 5:23 am

    It is such a delight to finally see you blossom into a beautiful soul and human being who knows and has the ability to express the most beautiful and enigmatic forms of expression through the human mind in the most simplest terms.
    I have known you for many years and I have always found you to be very thoughtful and insightful. Keep pushing ahead and finally you shall realise your true being through your heart and art.

    Wishes
    Anirudh

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  4. Shiv Hare August 15, 2020 at 5:44 am

    Thank you ANIRUDH

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