यह देह  तो तेरी जाग्रत अवस्था में है। यह पूरा संसार इतनी बड़ी सृष्टि तेरी जाग्रत में है। केवल इतना सा है , तू जागा, जाग्रत की सुई चलने लगी, इतना बड़ा जगत तुम्हें दिखने लगा। देखा अपना कमाल! जगत है जाग्रत का स्वपना और फिर स्वपना दूसरा, वह भी है तेरा स्वपना। निरख तू सत्य स्वरूप अपना। तू स्व को लख। जो कभी तू आँखों से देखता है, कानों से सुनता है, नाक से सूँघता है; …ये पाँच हैं कि तू पाँच है?  तो अवस्थाएं दो हैं- स्वप्न और जाग्रत । तू दो है क्या? वही तू जाग्रत बुद्धि से जगत देखता है, वही तू अंतः बुद्धि से  सपना देखता है।  तू ही सपना देखता है तू ही जाग्रत देखता है कि जागृत को और कोई देखता है और सपनों को और कोई? एक ही देखने वाला दोनों का है कि दोनों को और कोई देखता है ? हाँ, एक में दूरबीन (Binoculars) लगाता है, एक में खुर्दबीन (Microscope) लगाता है।  एक में बहिष्प्रज्ञ हो जाता है और एक में अंतःप्रज्ञ हो जाता है। प्रज्ञा बहिर्मुख और अंतर्मुख होती है।  तूने आँख बंद की  अंतः दुनिया स्मरण में आने लगी। जो दुनिया तुझे अभी प्रत्यक्ष दिख रही है तेरे स्मरण में आ रही है । आँख बंद करके तेरी स्मृति में और कौन है? स्मृति और प्रत्यक्ष दोनों, एक को है कि दो को? जिसको प्रत्यक्ष है  उसी को स्मृति है।  इसलिए भगवान श्री कृष्ण पन्द्रहवें अध्याय में बोलते हैं – मत्तः स्मृतिर्ज्ञान,  ज्ञान और स्मृति,  प्रत्यक्ष और स्वप्न, जाग्रत और स्वप्न दोनों तुझे ही होते हैं। भगवान कहते हैं कि मुझे होते हैं । मुझसे जाग्रत स्वप्न होते हैं । मुझसे प्रत्यक्ष ज्ञान व स्मृति होती है। यहाँ तक कि जगत न  दिखना भी मेरे रहते होता है।  कौन बोलते हैं ? भगवान श्री कृष्ण । ये लक्षण तुममें तो नहीं घटते ? परमात्मा श्री कृष्ण वाले लक्षण तुममें घटते हैं कि नहीं? और घटते हुए तुमने कभी श्री कृष्ण की तरह सोचा? तुम तो यह स्मृति से घबराते हो। प्रत्यक्ष को बनाए रखना चाहते हो। अज्ञान से डरते हो। भगवान कहते हैं कि ज्ञान का अभाव मेरे रहते हो जाता है। तुम्हारे रहते ज्ञान जाता है कि नहीं? जगत का ज्ञान, व स्वप्न ज्ञान तुम्हारे रहते  चले जाते हैं कि नहीं ? क्या तुम भी चले जाते हो?
कश्चित् धीरः प्रत्यगात्मानम् ऐक्षत्…..

‘कश्चित् धीरः’ धीर कौन? आपको तो धैर्य नहीं है। जो दिख जाता है, बस उसी को सच मानकर मरे जा रहे हो, लड़े जा रहे हो, जूझे जा रहे हो।  धैर्य  कहाँ है ? तुम जो कुछ अभी देखते हो, जो जो तुम्हें यंत्रों द्वारा दिखाई देता है उन्हें मानों  कि दिखाई देता है। पर किस बुद्धि से जगत, किस बुद्धि से स्वप्न, किस बुद्धि से कुछ नहीं दिखता ? सुषुप्ति बुद्धि में जगत नहीं दिखता और तुम ही को नहीं दिखता जगत। जाग्रतस्वप्नसुषुप्तत्यादि प्रपंच यत्  प्रकाशते।

जिससे तीनों प्रकाशित होते हैं। सुषुप्ति में जगत का न दिखना। आपको जगत नहीं दिखता गहरी नींद में; यह झूठ है कि सच है ?… इसका मतलब सुषुप्ति में भी महानुभाव आप उपस्थित थे, स्वप्न में भी थे, जाग्रत में भी तुम्हीं नहीं चेंज हो हुए और सब चेंज हो गया।

(Visited 50 times, 1 visits today)
Share this post

62 Comments

  1. 免费Binance账户 April 18, 2023 at 10:21 pm

    Can you be more specific about the content of your article? After reading it, I still have some doubts. Hope you can help me.

    Reply
  2. Derekfut August 7, 2023 at 10:50 pm

    connecting singles games: date game online – dating website best

    Reply
  3. Larryscumb August 10, 2023 at 10:19 pm

    ed medication ed drugs natural ed remedies

    Reply
  4. ClaudeIdion August 11, 2023 at 11:10 am

    drugs for ed: ed pills otc – buy ed pills

    Reply
  5. CharlesUncef August 11, 2023 at 4:38 pm

    Everything what you want to know about pills.
    escrow pharmacy canada canada ed drugs
    Generic Name.

    Reply
  6. Freddylox August 18, 2023 at 6:15 pm

    pharmacy canadian superstore: pharmacy in canada – cross border pharmacy canada

    Reply
  7. LucasBab August 20, 2023 at 5:56 am

    neurontin price: neurontin 3 – neurontin prices

    Reply
  8. Guicky September 1, 2023 at 12:44 am

    friends gather around a crackling bonfire amoeba can google voice receive text

    Reply
  9. t-ara September 2, 2023 at 2:39 am

    t-ara hello my website is t-ara

    Reply
  10. DennisBes September 19, 2023 at 3:48 am

    indian pharmacy: indianpharmacy com – п»їlegitimate online pharmacies india

    Reply

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *