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विवेक चूड़ामणि

“विवेक चूड़ामणि” पढ़ाते समय हमने कहा था कि इसे विवेक चूड़ामणि क्यों बोलते हैं?  इसका मतलब विवेक ऐसा भी होता होगा जैसे कहें कि यह आदमियों का सिरमौर है। इसका मतलब कुछ आदमी नीचे लेवल के भी हैं। ऐसे ही किसी को कहें कि यह चोटी का विद्वान है। इसका मतलब सबसे ऊंचा है। तो विवेक भी ऊंँचा नीचा होता है। क्या खाना, क्या नहीं खाना? यह भी विवेक है। क्या पाप है और क्या पुण्य है; यह भी विवेक है।  मैं क्या हूँ और जगत क्या है? दृश्य क्या है और द्रष्टा क्या है; यह भी विवेक है। जड़-चेतन, आत्मा-अनात्मा, यह भी विवेक है; पर विवेक चूड़ामणि नहीं है।  तो फिर वास्तविक विवेक क्या है? वास्तविक विवेक यह है कि सब कल्पित हैं। द्वैत ही वास्तविक नहीं है।  इसलिए जहाँ आप हो वहाँ विवेक होना चाहिए।
           “एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म।”
जहाँ तुम किसी से मिल गए हो, उसे पहले अलग करो। अलग कैसे करें?  विवेक के द्वारा कि मैं देह नहीं हूँ, मैं इंद्रियाँ नहीं हूँ, मैं मन नहीं हूँ, मैं बुद्धि नहीं हूँ, अहंकार आदि भी नहीं हूँ। तो फिर क्या हो? मेरे सिवा कुछ नहीं। “मायातिरिक्तं  यद् यद् वा तद् तद् मिथ्येत निश्चन्।”