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पूर्ण चेतना का चमत्कार


पशुओं की अपेक्षा मानव में चेतना अधिक आई। इस प्रकार मानव की अपेक्षा महामानव में पूर्ण चेतना आ सकती है। कॉन्शसनेस से सुपरकॉन्शसनेस में हम ज्यादा चेतन और पूर्ण चेतन हो सकते हैं। हम अंदर इतने अधिक चेतन हो जाएं की जड़ता जीरो हो जाए। अभी पेड़ों में, दीवालों में जड़ता तो पूर्ण है; लेकिन, चेतना जीरो पावर जैसी है। आप मान लीजिए कि दीवारों, पत्थरों और पेड़ों में 90% जड़ता है और 10% ही चेतना है। पशुओं में आप मान सकते हैं कि 50% जड़ता और 50% चेतना है। इसी प्रकार मानव में 75 % चेतना और 25% जड़ता है। इसीलिए वह कुछ सोचता और विचारता है। लेकिन, मैं यह कहता हूं कि हममें 99 % चेतना होनी चाहिए और केवल 1% जड़ता रह जानी चाहिए।
हमारा शरीर भी चेतना में रूपांतरित हो जाए; हमारा मन भी चेतना में रूपांतरित हो जाए और हमको ऐसा लगने लग जाए, जैसे हम चेतना के पुन्ज हैं। जैसे लोहे को अग्नि में डाल दें, तो अग्नि का पुंज हो जाता है। इसी प्रकार हमारा मन, हमारी वृतियां, हमारी प्रकृति इतनी जागरूक होती चली जाए कि हम देखें कि केवल “मैं” हूं। जब आप सुषुप्त होते हैं, तो सुषुप्ति में आप की जड़ता आत्मा में पहुंच जाती है और चेतना इतनी न्यून हो जाती है, जैसे जीरो पावर के ब्लब में प्रकाश न्यून हो जाता है। इस प्रकार नाममात्र चेतना, बाकी सब जड़ता रहती है।
स्वप्न में जड़ता भी होती है और चेतना भी होती है। शरीर का अज्ञान होता है और स्वप्न का ज्ञान होता है। इसका मतलब यह है कि आप अंदर- अंदर जगे भी हैं और बाहर – बाहर सोए भी हैं। जब आप जागृत अवस्था में आते हैं, तो आप 75 % चेतन हो जाते हैं। अब आपको शरीर का भी अनुभव होता है, भूतपूर्व कल्पनाओं तथा अवस्थाओं का भी अनुभव कर लेते हैं। लेकिन, यदि आप 75 % से ज्यादा जगना शुरू कर दें, तो जितनी- जितनी आपके अंदर दृष्टाभाव में जागृति आना शुरू होगी, उतना- उतना ही आपको लगेगा जैसे शरीर भी सुन्य हो गया, शरीर बिल्कुल शिथिल हो गया। शरीर पूर्ण चेतना में परिणत हो गया और “मैं” केवल चेतना का स्वरूप रह गया। “मैं” चैतन्य रह गया, “मैं” दृष्टा रह गया। इसको हम समाधि कहते हैं, जहां जड़ता जीरों में पहुंच जाती है।