ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिंपुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बंधानान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात॥
मृत्युंजय! जिससे मृत्यु पर विजय होती है! मृत्यु पर विजय पाने के लिए अविनाशी को जानना बहुत जरूरी है
पहले भी हम कह चुके हैं अंडे के पेड़ में चढ़कर हाथी को पत्थर नहीं फेंकना चाहिए। अरंडी के पेड़ में चढ़कर हाथी को नाराज करोगे तो वह पेड़ सहित तोड़ देगा। इस शरीर में बैठकर यदि इसी के सहारे रहे तो काल खा जाएगा। कथा चाहे भागवत की हो चाहे रामायण की, कथा वैष्णव करे चाहे सन्यासी, मृत्यु से पार जाने का रास्ता एक ही है कि देह से ऊपर उठे! अपना अहम् भाव छोड़ देहोsहम से शिवोsहम तक की यात्रा करें। यह शरीर शव है। शरीर से तुम जिंदा नहीं हो। भ्रम है तुम्हें! शरीर तुमसे जीवित है। तुम निकल जाते हो, शरीर मुर्दा होता है। भ्रम है कि शरीर से हम जीवित है। सच्चाई यह है कि तुम से शरीर जीवित हैं पर तुम इसमें रह नहीं सकते यह भी एक सच्चाई है। चाहो भी कि हम इसमें बने रहे पर नहीं रह पाओगे, देह छोड़ना पड़ेगा। इसी को लोगों ने मृत्यु कहां है। हम लोग मृत्यु से बचने का उपाय प्रारंभिक मानते हैं और बार बार शरीर में आने जाने से बचने के लिए वास्तविक साधना मानते हैं। इस मृत्यु से यदि बच भी जाओ तो दूसरे शरीर में जाओगे, तीसरे शरीर में जाओगे। देहोsहम से मृत्यु हैं और जीवोsहम से बार-बार मृत्यु है। फिर समझ लो, मैं किसी मत की कथा नहीं कहता, हाँ थोड़ा बहुत मत की बात करता हूं तो देह को लेकर। बाकी मेरा एक ही सिद्धांत है, देह के अभिमानी की मृत्यु होती है और जीव अभिमानी की बार बार मृत्यु होती है। एक बार इस देह में मरेंगे, दोबारा दूसरे देह में मरेंगे, तीसरी बार और देह में मरोगे। जब जब देह में जाओगे मरोगे। तो करना क्या है? देह में ना आना पड़े ! देह में नहीं आओगे तो नहीं मरोगे, देह में नहीं आओगे तो भ्रम भी नहीं होगा। इसलिए एक बार देहोsहम् से शिवोsहम् की यात्रा करनी ही पड़ेगी।