गुरुदेव बताते हैं रूस में योग के लगभग उनके 16 सेंटर है। उनकी 15 पुस्तकों का रशियन लैंग्वेज में अनुवाद हुआ है। और नास्तिक होने के बाद भी भारत में वे आते हैं, यहां शिविर में भाग लेते हैं। माने नास्तिकता भी उपाय नहीं है। मनुष्य की समस्याओं का हल नास्तिकता से नहीं होगा नहीं तो रूस में कोई समस्या ना होती। रूस में भी समस्या है। समस्याएं जब तक दुनिया है तब तक है और जब तक दुनिया है तब तक, ईश्वर नाम को लोग छोड़ सकते हैं पर सत्य की खोज करते रहे हैं, कर रहे हैं और आगे भी करेंगे । सत्य का विरोध नहीं किया जा सकता। आखिर इतना बड़ा संसार किसी से तो पैदा होता है! यदि लहर पैदा होती है तो जल तो है! लहर पैदा होने का कारण कुछ तो है! यह दुनिया कैसे पैदा हुई? क्यों पैदा हुई? क्यों पैदा की गई? इसलिए प्रश्न है, उठना चाहिए प्रश्न! कोsहम् मैं कौन हूं?
कोsहं कथं केन कुतः समुद्गते ? मैं कैसे यहां आया? क्यों आया? कौन मुझे यहां ले आया? इस देह में और कौन हैं? क्या कारण है जो इस देह को छोड़कर जाना पड़ता है? बहुतों ने……… प्रह्लाद का बाप जिसने जाने से(मरने से ) बचने के लिए बहुत प्रयत्न किया, वरदान मांग लिया फिर भी बचा नहीं। इतना तप तो आप करोगे नहीं। अर्थात…… मृत्यु से बचने का उपाय नहीं है चाहे रामायण पढ़ लो चाहे भागवत पढ़ लो। हम तो ज्यादा नहीं पढ़ते पर हमारे चेले पढ़ते हैं तो हम सुन लेते हैं। तो भागवत जी में जब कथा की पूर्णता होगी तो उसमें भी चले जाएंगे कृष्ण। कृष्ण गए लेकिन कहा गया कि ‘स्वधाम गए! ‘ तो शब्द ही तो बदला है, शरीर ही तो बदलाहै, शरीर ही तो छोड़ गए। तो प्रह्लाद का बाप सोच रहा था कि मुझे रहने को(अमर होने का) मिल जाए आशीर्वाद! महामूर्ख है वे जो शरीर से अमर होने की कोशिश कर रहे हैं।