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मन या मौन

जब तक ध्यान में नहीं डूबेंगे तब तक कितने भी उत्तर मिल जाएं ।समाधान नहीं होगा ।

मौन जब पूर्ण होता है तो मन होता ही नहीं। मन की अवस्था का सवाल नहीं है। मौन का अर्थ है मन की मृत्यु। वहाँ मन नहीं है। वहाँ जो रह गया है उसी को हम आत्मा कहते हैं। तो मौन, मन की अवस्था नहीं है। मौन है मन की मृत्यु, मौन है मन का विलीन हो जाना।

• जैसे सागर में लहरें हैं , कोई हमसे आकर पूछे कि जब सागर शान्त होता है तो लहरों की क्या अवस्था होती है, तो हम क्या कहेंगे? हम कहेंगे, जब सागर शान्त होता है तो लहरें होती ही नहीं। लहरों की अवस्था का सवाल नहीं। सागर अशान्त होता है, तो लहरें होती हैं। असल में लहरें और अशान्ति एक ही चीज के दो नाम हैं। अशान्ति नहीं रही तो लहरें नहीं रहीं। रह गया सागर।

मन है अशान्ति, मन है लहर। जब सब मौन हो गया तो लहरें चली गईं, विचार चले गये, मन भी गया, रह गया सागर, रह गई आत्मा, रह गया परमात्मा।

• परमात्मा के सागर पर मन की जो लहरें हैं वे ही हम अलग-अलग व्यक्ति बन गये हैं। एक-एक लहर को अगर होश आ जाये तो वह कहेगी “मैं हूँ!” यह हमारी एक-एक मन की अशान्त लहरों का जोड़ है। ये लहरें विलीन हो जायेंगी तो आप नहीं रहेंगे, मन नहीं रहेगा। रह जायेगा परमात्मा, रह जायेगा एक चेतना का सागर।

• परिपूर्ण मौन, मन की अवस्था नहीं, मन की मृत्यु है। जैसे-जैसे हम मौन होते हैं वैसे-वैसे हम मन के पार जाते हैं। जितना ज्यादा हम विचार से भरे होते हैं उतना हम मन के भीतर होते हैं, जितना विचार के बाहर होते हैं उतना मन के बाहर होते हैं।

• तो ऐसा मत पूछिये कि उस समय मन की अवस्था कैसी है। अगर मन की कोई भी अवस्था है तो अभी मौन नहीं हुआ। जब मौन होगा तो मन नहीं होगा। जहाँ मन है वहाँ मौन नहीं, जहाँ मौन है वहाँ मन नहीं।