न चेत् इहावेदिन् महति विनष्टी ।।
यदि उसको यही नहीं जाना तो बड़ा नुकसान किया हमने।
सब कुछ पाने में समय लगाया पर उसके लिए समय नहीं बचाया जो सब में रहता है। जब तक हमारी जिंदगी है सौ काम लगे रहेंगे, हम अपने सत् स्वरूप के आनंद को नहीं पा सकेंगे अगर हम शरीर के आधीन हो गए तो। इसीलिए हम आनंद में रहे। साधु शहंशाह होता है, बादशाहो का बादशाह होता है। लोग अपने मालिक नहीं है, दूसरों के मालिक बनना चाहते हैं। भारत में संतों को स्वामी जी कहते हैं। स्वामी अर्थात अपने आनंद के आप स्वयं मालिक है। अपने जीवन के आप मालिक है। और जिसे सुख की भीख ना मांगना पड़े वह मालिक है। तो भारत में मांग के खाने वाले( फकीर) अपने आनंद के मालिक थे, गुलाम नहीं थे। और विशेषकर के ‘अपनेे आनंद के’ मालिक थे। यदि आनंद हमें किसी से लेना पड़ा तो हम भिखारी हो गए। इसलिए वोट मांगने वाले बड़े बादशाह नहीं होते। किसी से लेने की इच्छा सबसे बड़ी कमजोरी है। और सबसे बड़ी ताकत है किसी से कुछ लेना नहीं । जो किसी से अपेक्षा नहीं करते ऐसे मुनी के पीछे भगवान चलते हैं। जो हाथ में कुछ रुपया बांधकर नहीं रखते और किसी से कुछ चाहते नहीं ऐसे लोगों के पीछे भगवान चलते हैं कि इनकी चरण धूलि मेरे माथे पर पड़ जाए।अर्थात कामना से रहित जो महापुरुष है उनके पीछे भगवान चलते हैं। इसलिए भगवान के पीछे तो प्रारंभ में चलना है। जब आप आत्माराम हो जाएंगे, अपने आनंद में रहेंगे तो भगवान तुम्हारी चिंता करेगा। तुम्हें किसी की चिंता करने की आवश्यकता नहीं। देहाभिमान गलिते विज्ञाते परमात्मनी
यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधयाः।।
देह का अभिमान ‘मैं देह हूं’ यह अभिमान यदि गलित हो गया और ‘मैं आनंद हूं’ यदि यह समझ लिया तो मुझे किसी की जरूरत नहीं तो ऐसे व्यक्ति के पीछे परमात्मा चलते हैं कि उनकी धूल उड़ेगी तो हम पर पड़ेगी। आप अपने अंदर का आनंद अनुभव करो।