धैर्य की, धर्म की, मित्र की और स्त्री की संकट में ही परीक्षा होती है। आप राष्ट्र भक्त हैं, यदि देश पर संकट आ जाए तो आपकी कसौटी हो जाएगी। यदि पार्टी में मान न मिले तो पार्टी से नाराज होगे कि देश से? ….. तो धैर्य क्या है? विपरीत परिस्थिति में भी डगमगाना नहीं, धैर्य है। दूसरा, सुख से बचना। जब सुख मिलता है तब आप भोगना चाहते हो या नहीं? भोगना चाहते हो! जब सुख भोग सकते हो तो दुःख क्यों नहीं भोगते? पर होता क्या है, आप सुख से बच नहीं पाते।
सुख में जो त्यागी बन सके और दुःख में होते न उदार।
….. सुख में सुखी, दुःख में दुखी होना सभी नर जानते हैं। यह मेरी एक कविता की लाइन है। रामायण में भी है- सुख हरषहिं जड़ दुख बिलखाहीं। दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं।। ‘धीर’ शब्द तो बहुत जगह है। जो सुख में सुखी, दुःख में दुःखी सभी नर हो जाते हैं, जानते हैं, सहज है । मान में फूलना, मान न मिलने पर बौखलाना किसे नहीं आता ? यह तो नेचुरल है लेकिन धैर्य नेचर के विपरीत है। धैर्य प्रकृति के विपरीत है, पर तुम्हारे हित में है।
इंजेक्शन का कष्ट मालूम पड़ना स्वाभाविक है, यह नेचर है। ऑपरेशन में तकलीफ होना नेचर है, परंतु धैर्य रखना आपके हित में है। धैर्य कभी हानि नहीं करता। घर में धैर्य रखो तो परिवार में नर्क नहीं आएगा। धैर्य छोड़ा तो गड़बड़ है। इसीलिए कहा है- धीरज धरहिं तो लागे पारा, नहीं तो डूबे माँझी धारा। ‘धीरज’ शब्द का प्रयोग बहुत जगह है,पर किस अर्थ में है? परिस्थितियों में डटे रहना, भागना नहीं, जागना। यदि आप अकर्ता और अभोक्ता होना चाहते हो तो धैर्य रखो। या यूँ समझो कि प्रतिक्रिया धैर्यहीन को होती है। तुरंत रियेक्ट (प्रतिक्रिया) करना जैसे, पानी में पत्थर फेंका तो लहर उठी वह रिएक्शन (प्रतिक्रिया) है। यह पानी का कर्म नहीं है, रिएक्शन है। आपको कुछ बुरा कह दिया तो आप में क्रोध पैदा हो गया; यह रिएक्शन है। आपकी प्रशंसा की, आपका चित्त खुश हो गया, चेहरे पर रौनक आ गई; यह रिएक्शन है, अधैर्य है, धैर्य नहीं है। आप सम्मान भी झेल नहीं पाए, आप अपमान भी झेल नहीं पाए । राम वनवास को भी झेल गए। इसलिए राम में धैर्य है, राम धर्मात्मा हैं, राम धर्म के साक्षात् विग्रह हैं। धर्म भी धैर्यवान के पास रहेगा। जिसमे धैर्य नहीं हैं उसमें शांति भी नहीं रहेगी। जिसमें धैर्य नहीं उसमें धर्म भी नहीं रहेगा। जिसमें धैर्य नहीं है उसमें ब्रह्मज्ञान भी नहीं रहेगा। धैर्यहीन व्यक्ति को ब्रह्म ज्ञान नहीं होगा। इसलिए धैर्य की बड़ी आवश्यकता है। छोटे स्तर का धैर्य नहीं, बड़े स्तर का। कोई विरला ही धैर्यवान होता है जैसे, भगवान राम वनवास में भी उनका मुख कुम्हलाया नहीं। यह श्लोक मैं पहले ही बोल चुका हूँ- –
प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।
मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मंजुलमंगलप्रदा॥
(अर्थ:-रघुकुल को आनंद देने वाले श्री रामचन्द्रजी के मुखारविंद की जो शोभा राज्याभिषेक से (राज्याभिषेक की बात सुनकर) न तो प्रसन्नता को प्राप्त हुई और न वनवास के दुःख से मलिन ही हुई, वह (मुखकमल की छबि) मेरे लिए सदा सुंदर मंगलों की देने वाली हो॥)
इसका मतलब यह नहीं है कि तुम्हें लोग लूटते रहें और तुम सहते रहो। तुरन्त प्रतिक्रिया न हो। फिर यदि कोई मारने लायक हो तो मार दो, लड़ने लायक हो तो लड़ो; पर उस सेकंड कुछ व्यक्त हुआ है तो वह सिर्फ प्रतिक्रिया है, क्रोध है।