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तुम्हें भी ऐसा लगता होगा
जब तुम ग़ुस्सा होती होगी
मैं सही और सब ग़लत
गलतफहमियों को सहती होगी
कुछ बातों में मैंने
तुम्हारा हस्ताक्षर नहीं पाया
हस्तक्षेप तो मेरा भी
तुम्हें कहाँ पसंद आया
इक होने का गाना गाकर
हम दो हरदम बने रहे
कैसे खजूर लगाए मिलके
की बस हरदम तने रहे
काश बेल बनकर कभी तुम
मुझसे यूँ लिपट जाओ
फिर मुझको भी तुम
पेड़ से बेल बनने का गुण सिखलाओ
तुम धरती हो आशा तुमसे
होना तो स्वाभाविक है
मातरत्व का गुण सजाकर
फिर क्षमा तुम सिखलाओ
मैं जल जाऊँ, तुम बुझ जाओ – २ “