कई जगह शादी को संबंध भी बोलते हैं, रिश्ता भी बोलते हैं, विवाह भी बोलते हैं। तो तुम्हारा अभी नाशी से रिश्ता हुआ है। शरीर नाशी है, इससे तुम्हारा रिश्ता हुआ है और इसीलिए चिंता है। तुमने जिससे ब्याह किया है ना! वह मांगलिक ग्रह वाला है, वह जाएगा। और यह रिश्ता सब ने कर रखा है। यह मत समझो कि गृहस्थी करते हैं, साधु तक किए बैठे हैं यह रिश्ता नाशी से। और जब ऐसे मांगलिक से कर लोगे तो चिंता होगी ही कि यह नहीं रहेगा, चला जाएगा। तो अब हमें क्या करना है? यहां तो ( श्रीमद्भागवत कथा में ) रुक्मणी जी का श्याम से, भगवान से विवाह हुआ है। तो तुम्हारा भी भगवान से ही कराना पड़ेगा पर रुक्मणी जैसी बात हो! कोई किसी के कहे से न कर ले। नहीं तो उनके घर के लोग कहीं और कराना चाहते थे, ठीक है! तो आप भी अभी तो बिना किसी से कहें, सहज ही शरीर से तुम्हारा रिश्ता हो गया है, संबंध हो गया है। यह शरीर आपका हो गया है, आप इसके हो गए हो। इसके धर्म आपके और आपका धर्म इसका हो गया है। जैसे लोहे को गरम आग में डाल दो तो यदि लंबी लंबी सरिया है तो आग लंबी लंबी हो जाती है और सरिया गरम नहीं है पर वह गर्म हो जाती है, सरिया का धर्म आग को मिल गया। लंबाई सरिया की है वह मिल गई आग को और गर्मी किसकी है आग कि, वह मिल गई लोहे को। इसको अन्योन्याध्यास बोलते हैं। तो जो जीव है वह देह हो गया और जो जड़ है वह चेतन हो गया। वह चेतन हो गया क्योंकि तुम्हारी चैतन्यता देह को मिल गई और देह की जड़ता, मृत्यु तुम्हें मिल गई। यह अन्याेन्याध्यास है। तो इसका तो हमें तलाक दिलाना पड़ेगा। शादी तो बाद में करेंगे पहले तलाक दो। अष्टावक्र गीता में कहा है यदि देहं पृथक्कृत्य चितिविश्रम्य तिष्ठसि ।अधुनैव सुखी शांतो बंध मुक्तिर्भविष्यसी।।यदि तुम यही देह से मैं पन हटाओ, देह से रिश्ता तोड़ो और चैतन्य में विश्राम करो, अपना संबंध अंतरात्मा से कर लो तो अभी मुक्त हो जाओगे। इसलिए अब क्या करना है? यह मैं जो है, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार यह चार ही इस देह को मैं मानते है। यही मुड़कर के करके आत्मा को, स्वरूप को मैं मान सकते है। अभी मैं को सीधा सीधा नहीं….. जैसे मैं देह नहीं है, मैं ने देह का अभिमान किया है। देह अभिमान तो मैं ने किया। यदि नींद ना खुले तो देह का अभिमान होगा क्या? देह में मैं पन नहीं हुआ, इसमें रहने वाला चिदाभास कहो या मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार कहो उसने इस देह से मैं का रिश्ता जोड़ दिया, इसको मैं बना कर मेरे बना लिए। फिर मैं-मेरे का दुख हो गया। इसलिए अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवेश बस यही पांच क्लेश है। और यही सबसे बड़ी परेशानी, भ्रम की तुम ये शरीर हो, नाम हो, रूप हो जिस दिन कोई भी व्यक्ति इसे सही सही समझ गया कि वो शरीर नही, ये शरीर उसका है जो कि प्रारब्ध वश मिला है इसमें रहने वाला वो तत्व जिसके निकल जाने से ये निष्क्रिय हो जाता है किसी काम का नही रहता वो कौन है उसे जानो ये उनके जानने को मिला यही मानव देह कुंजी है इसलिए ही ये देह रूपी मौका उसे मिला है क्योंकि जानवर ये नही सोच सकता। आप ही सोच सकते हो समझ सकते हो। इसलिए मेरे गुरुदेव कहते है-
“देह को मैं मानना, सबसे बड़ा ये पाप हैं।
सब पाप इसके पुत्र हैं, सब पुत्रों का ये बाप है।।“