यदि आप स्वप्न के आश्रय के प्रति जाग जाते। स्वप्न का आश्रय- साक्षी, स्वप्न में भी है और जग जाने पर भी है। यहाँ एक बात और महत्वपूर्ण है कि जगकर के देह में निन्यानवे परसेंट ही नहीं, सौ परसेंट लोग आ जाते हैं पर जगकर के साक्षी कोई एकाध परसेंट होता है। इसलिए जग कर देह में आने को ज्ञानी जगना नहीं मानते। स्वप्न से जागकर जो आदमी साक्षी हो जाए। स्वप्न में जो माना वह ठीक है। स्वप्न के साक्षी तुम थे लेकिन जब जगे तो साक्षी ही हो। स्वप्न के अभाव के साक्षी अभी हो। तुम देह नहीं हो। जग करके तुम क्या मानते हो साक्षी हो या देह हो? किसी आदमी को जो जाग जाए उसे पूछना कि तुम कौन हो? तो कहेगा कि मैं ये हूँ। और अभी क्या थे? अभी हम सपना देख रहे थे। इसलिए अज्ञानी कितनी बार जागता है पर साक्षी नहीं होता। एक देह छोड़कर दूसरा देह हो जाता है। साक्षी में तुम्हारा अहम भाव है ही नहीं। तुम्हारा अहम भाव विषय, देह में है।

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    1. Vcyncgoryjs July 14, 2022 at 12:14 am

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