अब कोई व्यक्ति भयवश भी झूठ बोलता है, स्वार्थवश भी झूठ बोलता है, तो जिस में भय नहीं है, स्वार्थ नहीं है वह झूठ नहीं बोलता। उसकी वाणी शास्त्र है! उसके उपदेश को मानना! कथा भी…… स्वार्थी लोग भी कथा करते हैं, अपने स्वार्थ की बातें ज्यादा कहते हैं। सत्य कम कहते हैं क्योंकि उनका स्वार्थ सिद्ध होगा। सत्य बोले तो स्वार्थ सिद्ध नहीं होगा। जैसे एक बात हम कभी बोलते हैं – यतयाः कंचनं दत्वा यति को स्वर्ण दान देने वाला, तांबूलं ब्रह्मचारिणं ब्रह्मचारी को पान देने वाला, चौरेपि अभयं दत्वा और अपराधी प्रकृति वाले को अभय देने वाला कि तुम चिंता ना करो हम तो हैं माने अपराधी को अपराध करने की स्वतंत्रता देने वाला , दाता नरकं व्रजेत् देने वाला नर्क जाता है।
इसलिए जो स्वार्थी होगा वह सत्य नहीं कहेगा। आप्तकाम पुरुष जो कहते हैं वह प्रमाण हैं। यदि वह कहे तो झूठ नहीं है। पर सबका कहा सत्य नहीं हो सकता। तो……. वह भी कह रहे थे अनुभव प्रमाण नहीं है। हां, अनुभव के आधार पर आपको यहां से चलना होगा। जैसे हम जन्म मरण का अनुभव करते हैं पर यह हमें पसंद नहीं है, इसके छूटने की इच्छा होगी तो आप अपने अनुभव से ही चलेंगे। इसको कहते हैं जो जहां खड़ा हो वहीं से तो चलेगा। तो वह चलना अलग है। आप दिल्ली से हरिद्वार आना चाहते हैं तो दिल्ली से चलेंगे। अब दिल्ली वाला आदमी मोदीनगर से नहीं चल सकता। कैसे चलेगा? और मोदीनगर वाला व्यक्ति मोदीनगर से ही चलेगा और रुड़की वाला रुड़की से ही चलेगा, दिल्ली से नहीं। हरिद्वार ही आना है, पर वह जहां खड़ा है वहीं से चलेगा। तो बात यह है कि हम कहां खड़े हैं! हम मनुष्य है कि हम जीव है? क्या है हम? तो जो हम हैं वही से तो यात्रा शुरू करें! यदि हम जन्म मरण वाले हैं तो अविनाशी से यात्रा शुरू नहीं होगी। अविनाशी तक तो यात्रा पूरी होगी, वह आपका गंतव्य है, आप वहां पहुंचना चाहते हैं। आप दुख में हैं तो दुख से पार जाने की इच्छा होगी। होगी ही! और पार जाने के लिए आप चलेंगे। अब यह तो नहीं कि पहले आप आनंद में खड़े हैं, शांति में खड़े हैं, मुक्त है, तो यात्रा की क्या जरूरत? यदि हरिद्वार में ही हो, अखंड परमधाम में ही हो तो अब यहां से कहां जाना? तो जैसे व्यवहारिक जगत में हम अपनी जगह से ही चलेंगे ऐसे ही आध्यात्मिक मार्ग में जिस अनुभूति पर हम टीके है उस अनुभूति की ओर जाएंगे जो हम चाहते हैं। अभी हमें अनुभूति है जन्म मरण की। यह हमारे लिए कल्पना नहीं है। यह हमारे लिए अभी यथार्थ है। यह हमारा सत्य है कि हम मरने वाले हैं, हमारा सत्य है कि हम दुख सुख वाले हैं, हमारा सत्य है कि हम करते हैं, हम अपने कर्मों का फल भोगते हैं। तो यहां से यात्रा शुरू करोगे। शास्त्र और सच्चा गुरु कथा वहीं से शुरू करता है जहां तुम हो और आगे पहुंचाता है धीरे धीरे। तो यह आवश्यक है जहां हम हैं वहां से यात्रा शुरू करेें।
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